Loading...

Loading

Loading
(You are in the browser Reader mode)

सन्तों को पुरस्कार मिलता है

मैंने दूतों का एक बड़ा दल को नगर से सन्तों के लिये मुकुट लाते हुए देखा। उसमें उनके नाम लिखे हुए थे। जैसे यीशु ने मुकुट लाने के लिये पुकारा तो दूत मुकुट को ला कर यीशु पास लाए। यीशु ने अपने हाथों से सन्तों के सिर पर मुकुट रखे। इसी तरह से वीणा बाजा भी लाये गये और यीशु ने हरेक सन्तों को दिया। सबसे पहले कप्तान दूत ने वीणा बाजा को बजाया। इसके बाद सब लोग निपुण अंगुलियों की तरह वीणा की तारों पर अंगुली रख कर बहुत ही मधुर स्वर से गीतों को बजाये। इसके बाद मैंने देखा कि यीशु सन्तों को नगर के फाटक की ओर अगुवाई कर ले चले। इसके बाद यीशु ने फाटक का चमकीला दरवाजा को पकड़ कर खोल दिया और कहा - “प्रवेश करो”। इस पवित्र नगर में आँखों को लुभाने वाली सभी चीजें थी चारों ओर सौन्दर्यपूर्ण नजारा देखने को मिला। सन्तों के चेहरे भी महिमा से चमक रहे थे। यीशु इन सन्तों को देख कर सन्तुष्ट हो कर बोला - “मैंने अपने दुःख भोगने का काम को सफल किया है।” इस बड़ा गौरव को पाकर अनन्त काल तक सुख भोग करो। तुम्हारे सब शोक-दुःख समाप्त हो गए। अब न कोई मृत्यु न शोक, न रोना और न पीड़ा भोगना पड़ेगा। मैंने देखा कि उद्धार पाये हुए लोगों ने अपने सिरों को झुका कर अपने मुकुटों को यीशु के पाँव तले रखना शुरू किया। तब यीशु ने उन्हें अपने हाथों से उठाया। इसके बाद वे अपने सोने के वीणा से इतना मधुर धुन बजाया कि सारा स्वर्ग आनन्द से लहरा उठा। 1SG 179.1

फिर मैंने यीशु के उद्धार प्राप्त किये हुए लोगों को जीवन के पेड़ के पास ले जाते हुए देखा। इसके बाद यीशु का ऐसा मधुर शब्द-ध्वनि जो मृतक मनुष्य के कानों में कभी नहीं सुना गया, सुनाई दिया। इस पेड़ की पत्तियाँ, यहाँ के नागरिकों को चंगा करने के लिये है और फल खाने के लिये हैं। इसमें से तुम सब खाओ। जीवन के पेड़ पर बहुत ही सुन्दर फल थे जिसको सन्त लोग बिना हिचकिचाहट के खा सकते थे। उस नगर में बहुत सुन्दर सिंहासन था। सिंहासन से स्वच्छ नदी का जीवन जल बह रहा था। यह तो बिलौर के समान स्वच्छ था। जीवन की नदी के दोनों छोरों (किनारों) पर जीवन का पेड़ लगा हुआ था। नदी के दोनों किनारों पर सुन्दर-सुन्दर पेड़ थे जिसमें बारहों महीने फल लगते थे। ये भी भोजन के लिये बहुत उपयुक्त थे। स्वर्ग की सुन्दरता का वर्णन मनुष्य नहीं कर सकता है। जैसे-जैसे एक के बाद दूसरा सुन्दर दृश्य आते रहे तो मैं इसमें डूब कर खो गई। मुझे बहुत ही अद्भुत और ऐश्वर्यमय दृश्य को दिखाया गया। मैं लिखना बन्द कर दी और आश्चर्य से बोल उठी - क्या यही अपार प्रेम है! क्या यही अद्भुत प्यार है! मनुष्यों की सबसे अच्छी भाषा भी स्वर्ग की बखूबी वर्णन नहीं कर सकती है, यीशु का अथाह प्रेम को भी नहीं वर्णन कर सकती है। 1SG 180.1