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अध्याय 24 - प्रार्थना की सभा

प्रार्थना की सभाएं सब से मनोहर और रुचिकर बनाई जाएं परंतु प्राय:इनका प्रबंध असंतोषजनक किया जाता हैं.बहुत से लोग उपदेश की सभा में तो उपस्थित होते हैं परन्तु प्रार्थना की सभा की उपेक्षा करते हैं. यहाँ पर विचार करने की आवश्वयकता है. परमेश्वर से बुद्धि की खोज करके सभा को संचालन करने के हेतु योजना बनानी चाहिए ताकि वह रुचिकर और आकर्षक हो.लोग तो जीवन की रोटी के लिए तड़पते हैं. यदि उन्हें यह प्रार्थना की सभा में मिल जाय तो वे वहीं जाकर उसे लेंगे. ककेप 159.1

लंबी नीरस व्याख्यान तथा प्रार्थना कहीं भी अनुचित है विशेषकर साक्षी सभा में.जो बोलने के लिए अग्रसर और साहसी हैं उन्हीं की सर्व प्रथम मौका मिलता है और वे साहसहीनों और एकान्त सेवियों को साक्षी का भी अवसर ले लेते हैं.जो लोग बेकार हैं वही साधारणत: अधिक बोलना चाहते हैं.उनको प्रार्थनाएं लम्बी और यांत्रिक होती हैं.वे स्वर्ग दुतों को और लोगों को थका डालते हैं. हमारी प्रार्थनाएं छोटी और संक्षिप्त और निर्दिष्ट होनी चाहिए.यदि किसी को लम्बी थकाने वाली प्रार्थनाएँ करनी हैं तो गुप्त कोठरी के लिए रख छोड़नी चाहिए.परमेश्वर के आत्मा को अपने हृदय में आने दीजिए और वह सारे नीरस आडम्बर को उड़ा ले जाएगा. ककेप 159.2