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अध्याय 38 - मनोरंजन

मसीहियों के पास आनन्द प्राप्ति के कई स्त्रोत हैं.वे त्रुटि रहित यथार्थता से कह सकते हैं कि कौन कौन साधन शास्त्रोक्त एवं न्यायसंगत हैं. वे उन मनोरंजन साधनों से आनन्दोपभोग कर सकते हैं जो मस्तिष्क की अशुद्ध नहीं करते अथवा आत्मा का पतन नहीं करते.जो नैराश्य उत्पन्न कर एक उदासीन प्रदान नहीं करते जिससे आत्म सम्मान पर धक्का पहुंचे और जीवन के उपयोगी मार्ग में बाधा उत्पन्न हो.यदि वे यीशु को अपने साथ लेकर प्रार्थना की भावना को कायम रख सकें तो वे बिलकुल सुरक्षित हैं.  ककेप 218.1

कोई भी मनोविनोद जिसके लिए आप विश्वास के साथ परमेश्वर से आशीष मांग सकते हैं भययुक्त नहीं है.पर वह मनोविनोद जो गुप्त प्रार्थना, प्रार्थना वेदी पर मनन अथवा प्रार्थना सभा में सहभागी होने के लिए व्यक्ति को अयोग्य बना देता है सुरक्षापूर्ण नहीं पर भयपूर्ण है. ककेप 218.2

हम उस श्रेणी में से हैं जो विश्वास करते हैं कि यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे जीवन के प्रत्येक दिवस में हम परमेश्वर की महिमा करें और कि हम केवल अपने मनोविनोद के हेतु तथा विलास प्रियता के लिए ही जीवित न रहें.हम यहाँ पर मनुष्यत्व का उपकार करने तथा समाज का आशीर्वाद बनाने के लिए हैं.यदि हम अपने विचारधारा को उन नीची नालियों में बहने दें जिनमें बहुत केवल घमण्ड और मूर्खता के अन्वेषणकर्ता हैं, और विचारधारा को निरंकुश छोड़ दें तो हम किस प्रकार अपनी जाति और पीढ़ी को लाभ पहुँचा सकेंगे? हम किस भांति अपने चहुं ओर स्थित समाज के लिए आशीर्वाद बन सकेंगे.हम निर्दोष होकर किसी मनोविनोद में सम्भागी नहीं हो सकते जो हमें विश्वस्त रुप से अपने सर्वसाधारण कर्तव्यों का पालन करने में अयोग्य ठहरा दे. ककेप 218.3

ऐसी कई वस्तुएं हैं जो स्वयं में उचित हैं किन्तु शैतान के द्वारा असावधान जन के लिए जाल के रुप में बदल दी गई हैं. अन्य व्यवहारों को भांति मनोविनोद में भी आत्म संयम को आवश्यकता है.प्रत्येक मनोविनोद के गुण पर भली भाँति विचार करना चाहिए.प्रत्येक युवक स्वयं यह पूछे कि यह मनोविनोद उसके शारीरिक,मनासिक तथा नैतिक स्वास्थ पर कैसा प्रभाव डालेगा.क्या वह मेरे मस्तिष्क को ऐसा भ्रमित कर देगा कि मैं परमेश्वर को भूल जाऊँ?क्या मैं उसकी महिमा को अपने सम्मुख से त्याग दूंगा? ककेप 218.4