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अध्याय 14 - परमेश्वर का घर

पृथ्वी पर परमेश्वर का घर (गिरजा घर )नम्र विश्वासी जन के लिए स्वर्ग का द्वार है.स्तुति का भजन,प्रार्थना तथा मसीह के प्रतिनिधियों द्वारा कहे गए वचन स्वर्गीय कलीसिया की उस श्रेष्ठ उपासना के लिए जहाँ कोई अपवित्र वस्तु कभी प्रेवश नहीं कर सकतो, लोगों को तैयार करने के हेतु परमेश्वर के नियुक्त किए गए साधन है. ककेप 111.1

घर परिवार का मंदिर हे,और कोठरी या बाज व्यक्तिगत उपासना के लिए अत्यंत एकांत स्थान है,परन्तु गिर्जाघर समाज का मंदिर है.उसमें समय,स्थान तथा उपासना के ढंग के विषय में नियम होने चाहिये.जो कुछ पवित्र है,जो कुछ ईश्वर आराधना से संबंधित है, बेपरवाही अथवा अवहेलना नहीं होनी चाहिए.इस लिए कि मनुष्य परमेश्वर की बड़ाई करने का शुभ कार्य कर सके उनका सम्मिलन ऐसा हो जिससे उन के मन में पवित्र व अपवित्र में अंतर होवे.जिनके विचार विस्तृत ख्यालात और अभिलाषाएँ उत्तम हैं वे ही हैं जिनके संबंध ऐसे हैं जो ईश्वरीय विचारों को बल देते है. धन्य हैं वे जिनके पास मंदिर (गिरर्जाघर ) है, चाहे बढ़िया हो या घटिया नगर में या खुरदरी पहाड़ी गुफी में हो,मामूली कोठरी में हो तो अथवा जंगल में हो. यदि वह उत्तम स्थान है जो स्वामी के लिए प्राप्त हो सकता है तो वह उस स्थान को अपनी उपस्थिति से पवित्र करेगा और वह जगह सेनाओं के प्रभु के लिये पवित्र हो जायगी ककेप 111.2